हैश शेयरिंग: हिंसक अतिवाद
YouTube, टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके, पहले नीतियों का उल्लंघन कर चुके कॉन्टेंट को फिर से अपलोड होने से रोकता है. ऐसा, YouTube पर लोगों को कॉन्टेंट दिखने से पहले ही हो जाता है. हम बच्चों का यौन शोषण दिखाने वाली तस्वीरों को YouTube पर फैलने से रोकने के लिए, इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल लंबे समय से करते आ रहे हैं. साल 2016 में, हमने कई इंडस्ट्री पार्टनर के साथ एक हैश शेयर करने वाला डेटाबेस बनाया. इसमें हम आतंकवाद से जुड़े कॉन्टेंट के हैश (या “डिजिटल फ़िंगरप्रिंट”) शेयर करते हैं, ताकि ऐसे कॉन्टेंट को फैलने से रोका जा सके. शेयर किए गए इस डेटाबेस में, फ़िलहाल Undefined parameter - FormatNumber से ज़्यादा यूनीक हैश मौजूद हैं. इन्हें देखने पर, ये काफ़ी हद तक एक जैसे दिखते हैं.
हैश शेयर करने वाले डेटाबेस के लिए, हैश का योगदान देने में हमारी अहम भूमिका है. ऐसा YouTube की बड़ी मीडिया लाइब्रेरी और हिंसक चरमपंथ वाले कॉन्टेंट की पहचान करने वाले हमारे ऑटोमेटेड सिस्टम की वजह से मुमकिन हुआ है.
'ग्लोबल इंटरनेट फ़ोरम टू काउंटर टेररिज़म' के तहत कॉन्टेंट शेयर करने की शर्तों के मुताबिक, 2023 में YouTube ने हैश शेयर करने वाले डेटाबेस के लिए Undefined parameter - FormatNumber से ज़्यादा यूनीक हैश का योगदान दिया.
कॉन्टेंट को हैश किए जाने के बाद, दूसरे प्लैटफ़ॉर्म इन हैश का इस्तेमाल कर सकते हैं. वे इनका इस्तेमाल, अपने प्लैटफ़ॉर्म पर आतंकवाद से जुड़े कॉन्टेंट की पहचान करने के लिए कर सकते हैं. साथ ही, वे अपने कॉन्टेंट की नीतियों के हिसाब से उस कॉन्टेंट का आकलन कर सकते हैं. साल 2017 में, इस डेटाबेस में योगदान देने वाली और इससे फ़ायदा पाने वाली कंपनियों की संख्या 4 थी, जो अब बढ़कर 13 हो गई है. इस व्यवस्थित पहल को अब आधिकारिक तौर पर 'ग्लोबल इंटरनेट फ़ोरम टू काउंटर टेररिज़म' (जीआईएफ़सीटी) चला रहा है.
आतंकवाद से लड़ने वाला ग्लोबल इंटरनेट फ़ोरम: हिंसक अतिवाद
साल 2017 में, YouTube, Facebook, Microsoft, और Twitter ने, कंपनियों के ग्रुप के तौर पर 'ग्लोबल इंटरनेट फ़ोरम टू काउंटर टेररिज़म' (जीआईएफ़सीटी) की स्थापना की. इसका मकसद है कि कोई भी आतंकवादी समूह, इस ग्रुप में शामिल कंपनियों के डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म का गलत इस्तेमाल न कर पाए. हालांकि, हमारी कंपनियां आतंकवाद की रोकथाम के लिए, सबसे सही तरीकों के बारे में कई सालों से लोगों को जागरूक करती आ रही हैं. फिर भी, जीआईएफ़सीटी की मदद से, यह काम तेज़ी से और व्यवस्थित तरीके से मुमकिन हो पाया है. साथ ही, इसकी मदद से सभी कंपनियां एकजुट होकर, इंटरनेट पर आतंकवाद से जुड़े कॉन्टेंट को ज़्यादा लोगों तक पहुंचने से रोक सकती हैं. टेक अगेंस्ट टेररिज़म पहल के साथ मिलकर, जीआईएफ़सीटी एक ग्लोबल वर्कशॉप को होस्ट करता है. इस वर्कशॉप में, टेक्नोलॉजी से जुड़ी कंपनियां, गैर-सरकारी संगठन, और अंतरराष्ट्रीय सरकारी विभाग शामिल होते हैं.
हैश शेयर करने वाले डेटाबेस का इस्तेमाल, अलग-अलग सदस्य और इंडस्ट्री पार्टनर करते हैं. इसलिए, इस बात पर सभी की आम सहमति ज़रूरी थी कि कॉन्टेंट के हैश की समीक्षा या उसे शेयर करने के लिए, किस तरह के कॉन्टेंट को आतंकवाद या चरमपंथ से जुड़ा माना जाए. साल 2021 की जीआईएफ़सीटी की सालाना पारदर्शिता रिपोर्ट के मुताबिक, “हैश शेयर करने वाले डेटाबेस का मूल दायरा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सभी प्रतिबंधों की सूची में शामिल संगठनों से जुड़े कॉन्टेंट तक सीमित है.”
YouTube और जीआईएफ़सीटी के अन्य संस्थापक सदस्यों ने, इंटरनेट पर मौजूद आतंकवाद और हिंसक चरमपंथी विचारधारा वाले कॉन्टेंट को हटाने के लिए क्राइस्टचर्च कॉल को सहमति दी.
क्राइस्टचर्च कॉल के अलावा, जीआईएफ़सीटी ने एक नया कॉन्टेंट इंसिडेंट प्रोटोकॉल (सीआईपी) बनाया. यह प्रोटोकॉल, जीआईएफ़सीटी की सदस्य कंपनियों के लिए बनाया गया, ताकि वे किसी हिंसक हमले के बाद, अपराधियों के बनाए गए लाइव स्ट्रीम वाले कॉन्टेंट के ख़िलाफ़ बेहतर कार्रवाई कर सकें.
इस प्रोटोकॉल को टेस्ट किया गया और यह असरदार साबित हुआ. जैसे, जर्मनी के हैली शहर में एक सिनेगाग पर हुआ हमला (अक्टूबर 2019), एरिज़ोना (अमेरिका) के ग्लैंडेल शहर में हुई गोलीबारी (मई 2020), न्यूयॉर्क (अमेरिका) के बफ़लो शहर में हुई गोलीबारी (जून 2022), और टेनेसी (अमेरिका) के मेंफ़िस शहर में हुई गोलीबारी के बाद इस प्रोटोकॉल को लागू किया गया. सीआईपी के बनने के बाद से, जीआईएफ़सीटी ने अपने इंसिडेंट रिस्पॉन्स फ़्रेमवर्क को ज़्यादा बेहतर बनाया है, ताकि किसी हिंसक हमले के बाद अपराधियों के बनाए गए, बिना लाइव स्ट्रीम वाले वीडियो और इमेज के ख़िलाफ़ कार्रवाई करते समय कॉन्टेंट इंसिडेंट टियर को शामिल किया जा सके.
राजस्थान (भारत) के उदयपुर शहर में हुए हमले (जुलाई 2022) के बाद, इसे पहली बार लागू किया गया.
जीआईएफ़सीटी धीरे-धीरे बेहतर होकर एक स्वतंत्र संगठन बन गया है. अब इसके पास एक इंडिपेंडेंट एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर और स्टाफ़ है. जीआईएफ़सीटी में सरकारी प्रतिनिधियों और गैर-सरकारी सदस्यों की एक स्वतंत्र सलाहकार समिति भी शामिल है. इसमें एडवोकेसी ग्रुप के सदस्य, मानवाधिकार विशेषज्ञ, शोधकर्ता, और तकनीकी विशेषज्ञ भी शामिल हैं. संस्था के नए गवर्नेंस फ़्रेमवर्क के तहत YouTube, जीआईएफ़सीटी के एक्ज़ीक्यूटिव ऑपरेटिंग बोर्ड का हिस्सा है.